विश्व पटल पर सदा प्रकाशित अद्भुत भारत मेरा भारत ।
पुरा काल में ऋषि मुनियो से सेवित भारत मेरा भारत ।
निज बल ज्ञान बुद्धि औ' गुण से पूरित भारत मेरा भारत ।
देहमुक्त हो विचर रहे संतों का भारत मेरा भारत ।
सागर सा स्वीकार करे सब ऐसा भारत मेरा भारत ।
स्वर्ण विहग के अपकृति की जो दशा भयंकर देख चुका है ।
निज आदर्शों को गिरी गहवर धरा सिंधु में खोज रहा है ।
उस अपमानित से मन की प्रतिछाया लगता मेरा भारत ।
विश्व गर्व करता था जिसपर और सभी वंदन करते थे ।
जहाँ धरा थी प्रेमपूर्ण, शत्रु का अभिनंदन करते थे ।
शत्रु के कटु दंश झेलता सहनशील है मेरा भारत ।
जो ज्ञानीजन का निवास था, जहाँ शांति का सदा वास था ।
विश्व प्रकाशित करने वाला ज्ञानपूर्ण अद्भूत प्रकाश था ।
निज प्रतिभा को मर्दित करता कुंठित भारत मेरा भारत ।
जिसकी सुविकसित भाषा थी, हर अवयव की परिभाषा थी ।
जिसके अनुपालन करने से विश्व चेतना की आशा थी ।
उस अद्भूत भाषा को नित्य तिरस्कृत करता मेरा भारत ।
खुद कुमार्ग पर चलने वाले देश चलाने को बैठे है ।
पेट नहीं भर सकें जो खुद का, हमें खिलाने को बैठे हैं ।
लोभी, दुष्कर्मी, हत्यारे लाज बचाने को बैठे हैं ।
स्वार्थपूर्ण हैं जो हमको परमार्थ सिखाने वो बैठे हैं ।
शब्दों के जाले फैलाए हमें फसानें को बैठे हैं ।
जिनके दर्शन मात्र नयन को अति कष्टकर अब लगते हैं ।
श्वेत वस्त्र की छाया नित जन जन को अब जो ठगते हैं ।
उनके शासन की जठराग्नि नित्य बुझाता मेरा भारत ।
निज मर्यादा खो कर के जो दीन हृदय में छिप बैठी है ।
निर्धन जन की करुणा बन जो भ्रमण दिवा रात्रि करती है ।
उस भारत माता की जय जयकार लगाता मेरा भारत ।