भारतवासी

अब गर्व करें, शर्मिन्दा हों या सर पत्थर पर दे मारें ।

दुःख-दर्द लिए हैं देख रहे हम भारतवासी बेचारे ।

हम देख रहे क्या आज़ादी का मूल्य चुकाया है हमने ।

पैसे वाले दानव दल को भी श्रेष्ठ बनाया है हमने ।

हम देख रहे सर काट लिये जाते हैं कैसे सरहद पर ।

कैसे हमने एक कायर को है बना दिया अब अजर-अमर ।

हम मानव हैं पर मानव सा व्यवहार नहीं करते अक्सर ।

हम छीन-छपट कर धोखे से पा लेते औरों के अवसर ।

हम देश गान तो करते हैं पर देश ज्ञान से दूर खड़े ।

किसकी मजाल जो देशभक्त सा मुद्दे की कोई बात करे ।

हम उसको उत्तर या दक्षिण घोषित कर के बढ़ जाते हैं ।

जनता रोटी को तरसे पर हम नये शिखर चढ़ जाते हैं ।

हम प्रगतिशील हैं, प्रगति के ख़ातिर ही तो स्कूल गए ।

फिर धन अर्जन की शिक्षा ले नैतिक मूल्यों को भूल गए ।

ऐसी हालत है अपनी कि पशु क्या कीड़े भी दुत्कारें ।

ऐसे दुष्कर्मी हत्यारे हम भारतवासी बेचारे ।

कोई बेटा, बहू, भतीजा तो कोई नेताजी का साला है ।

कोई चाय बेचनेवाला था, अब देश बेचनेवाला है ।

ये रिश्तों नातों पर पल कर जैसे तैसे बढ़नेवाले,

ये भेद-भाव ये ऊँच-नीच, छीन-छपट, धरने-नारे,

ये दान-डोंग फिर लूटपाट, अपने ही हैं चेहरे सारे ।

इन चेहरों में छिपकर बैठे हम भारतवासी बेचारे ।

सब क़िस्मत का खेला बाबू, अच्छी है या कि खोंटी है ।

कोई भूखा है तो मरे, हमें तो मिली हमारी रोटी है ।

कोई बड़ी हवेली वाला है, अपनी खटिया भी छोटी है ।

हम कुत्ते अपने मालिक के, वो फ़ेक रहा कुछ रोटी है ।

धन पाकर भी संतोष नहीं, हम चुप तो हैं ख़ामोश नही ।

ये देश रहे या लूट जाए, बस अपना कोई दोष नही ।

पैदा होने से मारने तक हम गिनते हैं दिन के तारे ।

रातों के सूरज ढूँढ रहे हम भारतवासी बेचारे ।