स्वच्छंद विचरण ना करो, वह देश ही किस काम का,
जो राह रोके आदमी की, आदमी है नाम का ।
अन्याय करना ही नहीं, यू झेलना भी पाप है ।
ये कायरों की फ़ौज ही इस देश पर अभिशाप है ।
ये झेलते अन्याय को, बस आँख मूँदे चल रहे ।
इनके विषैले सर्प इनके ही लहू पर पल रहे ।
कुछ जानवर इनके घरों से नोच खाते बोटियाँ ।
ये सो रहे, थककर यहाँ, खाकर वही कुछ रोटियाँ ।
इनको जगाना काम है मेरा नहीं, मैं कौन हूँ ?
बस खौलता है रक्त, यह सब देखकर, मैं मौन हूँ ।
है न्याय कहता काट दो वो हाथ जो तुम पर बढ़े ।
उस शीश का है न्याय कि वो काल की वेदी चढ़े ।
ये शब्द हैं पाखंड, करना कर्म ही बस धर्म है ।
अन्याय करना पाप तो सहना उसे दुष्कर्म है ।