नेता

गली गली के चौराहों पर गांधीजी के भूत खड़े ।

कभी अहिंसा प्राण थी जिनकी आज उसी से च्युत खड़े ।

मानवता के उत्तम वैरी बनकर हैं अवधूत खड़े ।

अद्भूत शब्दों से आपूरित नेता नये ज़माने के ।

हाथी जैसे दाँत हैं इनके, खाने और दिखाने के ।

मरने तक ये नहीं छोड़ते पीछा अपने वैरी का ।

प्राण छोड़ कर ले लेते हैं, बाक़ी है जो बचा-खुचा ।

गांधी छाप है भोजन इनका, कपड़े बिलकुल खादी हैं ।

यूँ लगता है नखशिखांत ये सच्चे गांधीवादी है ।

कोई नहीं प्रतिकारी इनका और नहीं प्रतिवादी है ।

आँख मूँद कर इनके पीछे खड़ी पूरी आबादी है ।

भेंड़ो पर शासन करते हैं, भेंडतंत्र के सूत हैं ये ।

फिर क्यों कोई यह ना माने गांधीजी के दूत हैं ये ।

इनके घर का बच्चा-बच्चा टाटा बिरला जैसा है ।

इनको कैसे पता चले की बाक़ी भारत कैसा है ।

इनके चमचे, चाकू, बर्तन पल जाते हैं जैसे तैसे ।

मगर विवश हो सोंच रहे हम अपना जीवन काटें कैसे ।

चूस रहे ये ख़ून प्यार से, जोंक बड़े ये पक्के हैं ।

स्वर्गलोक से देख के इनको गांधी हक्के-बक्के हैं ।

भला हुआ जो लूटपाट में, आपस में टकरा जाते ।

वरना एक जो होते, सारा भारत बेच के खा जाते ।