तेज धार वाली बुद्धि से,
भव के बन्धन काट रहे हैं,
अपने भगवानो की खातिर,
जूठी पत्तल चाट रहे हैं,
खुद की आफत दौड़-दौड़ कर,
औरों में भी बाँट रहे हैं,
कोई जो समझाना चाहे,
उल्टा उसको डांट रहे हैं,
खोल नजर के नाले को,
ये देख रहे हैं दिन के तारे,
ऐसे अपने भगत बेचारे ।
धन त्यागो तो ज्ञान मिलेगा ?
त्यागोचित्त सम्मान मिलेगा ?
भिक्षुक से क्या भीख मिलेगी,
लोभी से क्या दान मिलेगा,
जो धनहीन कही ठहरे तो,
कुत्तों सा अपमान मिलेगा,
मूढ़मति, सब त्याग, भाग,
सुख चैन छोड़, रोते हैं सारे,
ऐसे अपने भगत बेचारे ।
धनवानों को कुर्सी पर,
निर्धन को नीचे बैठाते हैं,
ऐसे बड़े भगत कहलाते,
पैसे पर फिर बिक जाते हैं,
कभी-कभी औरों से खुद को,
तपोनिष्ठ भी बतलाते हैं,
फिर नारी देखी तो,
उसके चरणों में ये बिछ जाते हैं,
काम चाकरी करता इनकी,
क्रोध पला है इनके द्वारे,
ऐसे अपने भगत बेचारे ।