दो रोटी के ख़ातिर सबको, भूखे हम मरवाएँगे,
लाखों रुपयों वाली कारें, बैलों से खिचवाएँगे,
धर्मान्धों की पलटन की हम सारी भूख मिटाएँगे,
चाहे जो कुछ भी करना हो, मंदिर वहीं बनाएँगे ।
गधों को भी बाप बना अपने सर पर बैठाएँगे,
भारत को बर्बादी तक हम धक्का दे पहुँचाएँगे,
अपने घर से अपनी चीजें भीख माँगकर पाएँगे,
और कुटाई होगी तो गांधी गांधी चिल्लाएँगे,
देश हमारा कैसा था ये दुनिया को बतलाएँगे,
उनकी हिम्मत कैसे जो वो हम पर प्रश्न उठाएँगे,
खींच खाँच कर उनको भी इस दलदल में ले आएँगे,
नए वक्त के भारत की तस्वीर उन्हें दिखलाएँगे ।
सोंच रहा हूँ कब से मैं की रामलला कब आएँगे,
मंदिर के ईंटों की भक्ति से प्रसन्न हो जाएँगे,
या कि उनपर सर देकर इन भक्तों को समझाएँगे ।